Richa
Jain(India/UK) come from India, she immigrated to the UK in 2016 . She is an IT engineer by
qualification, a teacher by choice, and a poet by passion. Her work has been published in various magazines and anthologies. Her Hindi poetry collection ‘Richayein’ was selected by The High
Commission of India, UK for Dr. Laxmimal Singhvi Publishing Grant Scheme for the year 2018.
English
EAST FINCHLEY CEMETERY
1.
It is 14th March 2020.
The death toll in London has reached 21.
More than double in a day.
They say the actual figures are more.
I am out for a walk. It’s a Saturday afternoon.
My daughter has gone to attend a birthday party – further North
Italy locked down. France nearing lock-down. Britain is brave.
I come to the cemetery. It’s safe. Always.
Today, safer than ever
Nobody coughs, nobody sneezes.
I smell a different smell here.
Sometimes it attracts me
Sometimes forces me to take another path.
I have seen a bride and a groom here; I have seen a horse carriage too.
I have noticed hustle-bustle in the chapel on Sundays and Saturdays
I have seen a woman with flowers, people praying, middle aged couple walking hand in hand I have seen kids giggling, eating cake
You live, you come here.
You die, you come here.
You are uncertain, you come here
Sit on a bench – draw strength from the old Cedar, from Acacia, from the long queues of Cypress, from a crow, from the buried
I am here quite often.
3.
On one hand - the silence of the graveyard
Its high wall
On the other, a busy road
Full of running cars
In the middle I walk
On the footpath
Well aware of the two sides
Safe, happy, full of zeal
In me lies no silence of the necropolis
Nor the speed of a motor
I have steps
I have breaths
I have a rhythm.
I walk, simply walk
4.
He was walking ahead
I was behind
I got closer, he started moving faster
I came a bit closer, he flew and sat on a tree
I, a little closer, he, even higher
Then he pooped
He got scared of me
He didn't know I couldn't fly
Little did I know, I frighten him.
5.
No one is ahead, no one behind
Far-far away
There are many people on the sides though
Buried, deep
In the middle I walk
They constantly pull me strongly to their sides
Either to give
Or to snatch
I start to walk faster towards the front
And sit on the bench near the chapel.
The fountain and the two giant Lebanese cedars on the either side are a pleasant sight.
Then I look back
And silently bury what I have acquired so far and also what I am yet to
And then I walk out
Hindi
ईस्ट फिंचली का क़ब्रिस्तान
आज 14 मार्च 2020 है।
लंदन में मौत का आँकड़ा 21 तक पहुंच गया है।
एक दिन में दोगुने से ज्यादा
वे कहते हैं कि वास्तविक आंकड़े और अधिक हैं।
मैं टहलने के लिए निकली हूँ। शनिवार की दोपहर है।
मेरी बेटी एक जन्मदिन की पार्टी में गई है – और आगे उत्तर की तरफ़
इटली बंद हो गया। फ़्रांस बंद होने की कगार पर। ब्रिटेन बहादुर है।
मैं पड़ोस के कब्रिस्तान में आती हूं। बहुत सुरक्षित जगह है ये, हमेशा।
आज, पहले से भी ज्यादा
कोई खाँसता नहीं, कोई छींकता नहीं
एक अलग तरह की गंध आती है मुझे यहाँ
कभी लुभाती है, बुलाती है
कभी कहती
है, ‘कोई और रास्ता लो’
मैंने देखा है यहाँ एक जोड़ा - दूल्हा और दुल्हन का
एक घोड़ा गाड़ी भी देखी है मैंने एक दिन,
किसी ताबूत को
सम्भाले
रविवार और शनिवार को चैपल में हलचल देखी है
फूल चढ़ाती औरत देखी है
प्रार्थना करते लोग देखे हैं
हाथों में हाथ डाल टहलते अधेड़ जोड़ा देखा है
ठिलठिलाते, केक खाते बच्चे देखे
हैं
तुम ज़िंदा हो, यहाँ आते हो
तुम मर जाते
हो, तो आते हो
अनिश्चित, तो भी आते हो
यहाँ एक बेंच पर बैठने और समझने - पुराने देवदार से, बबूल से, साइप्रस की लम्बी क़तारों से, कौवे से, जो दफन हैं उनसे
मैं अक्सर यहाँ आ जाती हूँ।
3.
एक ओर क़ब्रिस्तान का सन्नाटा
उसकी ऊँची दीवार
तो दूसरी ओर एक व्यस्त सड़क
बीच में मैं
फूटपाथ पर चलती हुई
पूर्ण रूप से सुरक्षित, सुखी, उत्साह से भरी हुई
ना मझमें सन्नाटा है क़ब्रिस्तान का
वो, जो कारों की दौड़ से अनभिज्ञ चुपचाप लेटा है
और ना ही है मुझमें दौड़
किसी मोटर की
मेरे पास कदम हैं
मेरे पास साँसें हैं
मुझमें लय है
मैं चल रही हूँ, बस चल रही हूँ
4.
वो आगे चल रहा था
मैं पीछे-पीछे
मैं जैसे ही थोड़ा नज़दीक पहुँचती
वह और तेज़ी से चलने लगता
मै और पास आई तो वो उड़ कर पेड़ की डगाल पर बैठ गया
थोड़ा और पास तो और और ऊँची डगाल पर
फिर बीट कर दी
डर गया था वो मुझसे
उसे पता नहीं था मैं उड़ नहीं सकती
मुझे भी क्या पता था कि डरता है वो मुझसे
आगे पीछे कोई नहीं
दूर-दूर तक
आजू-बाजू बहुत लोग हैं
धँसे हुए
बीच में मैं
खींचते हैं मुझे लगातार
कभी जैसे कुछ पकड़ा रहे हों
कभी मेरा कुछ छुड़ा रहे हों
मैं तेज कदमों से चलकर चैपल के पास वाली बेंच पे बैठ जाती हूँ।
सामने का फ़व्वारा और उसके दोनों ओर लगे दो विशालकाय लेबनानी देवदार बड़े सुखदायी हैं।
फिर पीछे नज़र डालती हूँ
और उसे जो मिल चुका है और उसे भी जिसकी अभी चाह है
दफ़न कर बाहर निकल आती हूँ।