Richa Jain (UK/India) come from India, she immigrated to the UK in 2016 . She is an IT engineer by qualification, a teacher by choice, and a poet by passion. Her work has been published in various magazines and anthologies. Her Hindi poetry collection ‘Richayein’ was selected by The High Commission of India, UK for Dr. Laxmimal Singhvi Publishing Grant Scheme for the year 2018.
English
Hindi
HAVE YOU KNOWN BROWN POPPIES?
Have you known brown poppies?
No?
I haven’t either.
Prohibited back home - illegal
Non-existent in Britain
Exuding sanguine, scarlet
Brilliance of loyalty and courage
They used to be red
Once upon a time
Black perfidy of their white Sarkaar
Turned
Them brown
And their fidelity into a crime
In the eyes of the people
Whom they belonged
Crossed by Victoria
Forgotten by their own
The tropical flowers froze
With frosty bones
Victors of war
Victims of treachery
Wearing twisted turbans
Orphaned they lay
In France and Flanders
In Mesopotamia, Africa
In Palestine
In thousands - over 74
Have you known brown poppies?
They were red – brilliantly red.
UNDERSTANDING PICASSO
Though I can gaze at it for hours
I don’t think I understand art
The title gives me a clue and takes me in
Into the labyrinth of shapes and colours
I try to decipher
Impatiently, I look out for something
Something that my eyes have known
As soon as I notice something
I gleam with excitement
But the very next moment
I am perplexed –
It’s that, but not exactly!
Bigger, somewhat different
It is protruding and displaced
Oh, is it of this colour?
This shape?
It is weird
But interesting!
And
I try to redefine it in my mind
Perhaps, I need some more time
So I give it a little more time
Yet unsure
I move on to the next feature
That my eyes have known
And I gleam
But the very next moment
I am perplexed, again.
I can gaze at it for hours.
.
I don’t think I understand art
ब्राउन पॉपी
प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को समर्पित[1]
क्या आप जानते हैं - ब्राउन पॉपी के फूलों को?
नहीं ना!
मैं भी नहीं।
अपनी ही ज़मीन पर प्रतिबंधित
गोरी मिट्टी में कबके, दबके गुम हो चुके
साहस और निष्ठा के प्रतीक
वे भी कभी
रक्तवर्णित आभा बिखेरते थे
गोरी सरकार के काले कपट ने
उन लाल चमकीले फूलों को
मटमैला बना दिया
देशभक्ति को उनकी द्रोह सा
दिखला दिया
विक्टोरिया के क्रॉसों से सजे
युद्ध-विजयी, छल-पराजयी
ऊष्ण कटिबंध के वे भूले-बिसरे गरम फूल
क़ब्रीली ट्रेंचों में, बर्फ़ीली चादर ओढ़े,
आड़ी-टेढ़ी पगड़ियों के
फैंटों में कसे हुए
अनाथ
पड़े हैं
फ़्रांस में, फ़्लानडर्स में
मेसोपोटेमिया में, अफ़्रीका में
फ़िलिस्तीन में
हज़ारों की तादाद में (७४ से भी ज़्यादा)
क्या आप जानते हैं उन ब्राउन पॉपी के फूलों को?
नहीं ना!
मैं भी नहीं।
वे सुर्ख़ लाल थे।
माँ के ‘लाल’,
सुर्ख़ लाल!
[1] लगभग 1३ लाख भारतीय सैनिकों ने प्रथम विश्व युद्ध में अपनी सेवाऐँ दी, और उनमें से ७४००० से भी अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई।
प्रयत्न पिकासो को समझने के
हालांकि मैं इसे घंटों तक टकटकी लगा देख सकती हूं
पर मुझे लगता नहीं कि यह कला मुझे समझ में आती है
शीर्षक एक सुराग देता है
और मुझे अंदर ले जाता है
आकृतियों और रंगों की भूलभुलैया में
मैं समझने की कोशिश करती हूँ
अधीरता से,
चित्र के किसी कोने में, किसी हिस्से में, किसी टुकड़े में
ढूँढ़ती हूँ कुछ
जिसे मेरी आँखों ने जाना हो
और यकायक चमक उठती हैं
मेरी आँखें
जैसे कुछ देख लिया हो - जाना-पहचाना सा
… अगले ही पल मैं हैरान - क्या यह वही है?
कुछ बड़ा है!
कुछ अलग,
यह फैला हुआ और विस्थापित है।
अरे , यह तो इस रंग का है? यह आकार?
अजीब है,
लेकिन दिलचस्प!
अपने दिमाग में टाँक
पर्याय-परिभाषा
आगे बढ़ती हूँ
लगता है, कुछ और समय चाहिए
हो सकता है तब समझ पाऊँगी
और अच्छे से
किसी और अलग तरीक़े से
फिर टटोलती हूँ मैं चित्र को
अपनी विस्मय भरी आँखों से
और दूसरे हिस्से पर जाती हूँ
शायद मेरी आँखों को दिखा कुछ पहचाना सा
अगले ही पल - हैरान, फिर से!
मैं इसे घंटों तक निहार सकती हूँ
घंटों प्रयत्न कर सकती हूँ,
पिकासो को समझने का